तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो | एक कविता बिहार से
- PatnaBeats
- Dec 1, 2023
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कहते हैं, “दिल से जो बात निकली ग़ज़ल हो गयी”। सही मायने में ये वो कलमकार थे जिन्होंने दिल की बात कही और कुछ ऐसे कही कि हर पढ़ने वाले के दिल तक पहुँचे।
कलीम आजिज़ उर्फ़ कलीम अहमद का जन्म 11 अक्टूबर 1924 को तेलहाड़ा, पटना में हुआ। पटना विश्वविद्यालय से पीएचडी हुई और वहीं पटना महाविद्यालय में लेक्चरर हुए।
मौलाना मजहरुल हक़ पुरस्कार, बिहार सरकार; बिहार उर्दू अकादमी पुरस्कार सहित भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री से अलंकृत कलीम साहब की लिखी हुई कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं। 15 फरवरी 2015 को अपनी अमर ग़ज़लें हमारे सुपुर्द कर कलीम साहब दुनिया को अलविदा कह गए।
पेश है पटना बीट्स की पेशकश ‘एक कविता बिहार से‘ में आज पद्मश्री कलीम अहमद जी की ये दो ग़ज़लें।
ग़ज़ल 1
दिन एक सितम, एक सितम रात करो हो ।
वो दोस्त हो, दुश्मन को भी जो मात करो हो ।।
मेरे ही लहू पर गुज़र औकात करो हो,
मुझसे ही अमीरों की तरह बात करो हो ।
हम ख़ाकनशीं तुम सुखन आरा ए सरे बाम,
पास आके मिलो दूर से क्या बात करो हो ।
हमको जो मिला है वो तुम्हीं से तो मिला है,
हम और भुला दें तुम्हें? क्या बात करो हो ।
दामन पे कोई छींट न खंजर पे कोई दाग,
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो ।
यूं तो कभी मुँह फेर के देखो भी नहीं हो,
जब वक्त पड़े है तो मुदारात करो हो ।
बकने भी दो आजिज़ को जो बोले है बके है,
दीवाना है, दीवाने से क्या बात करो हो ।
ग़ज़ल 2
मेरी मस्ती के अफसाने रहेंगे,
जहाँ गर्दिश में पैमाने रहेंगे।
निकाले जाएँगे अहल-ए-मोहब्बत,
अब इस महफिल में बे-गाने रहेंगे।
यही अंदाज-ए-मै-नोशी रहेगा,
तो ये शीशे न पैमाने रहेंगे।
रहेगा सिलसिला दा-ओ-रसन का,
जहाँ दो-चार दीवाने रहेंगे।
जिन्हें गुलशन में ठुकराया गया है,
उन्हीं फूलों के अफसाने रहेंगे।
ख़िरद ज़ंजीर पहनाती रहेगी,
जो दीवाने हैं दीवाने रहेंगे।
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