एक आवाज़ में आवाज़ मिलाते हुए लोग | एक कविता बिहार से
- PatnaBeats
- Dec 1, 2023
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“लुत्फ़ हमको आता है अब फरेब खाने में,
आजमाए लोगों को रोज आजमाने में|
दो घड़ी के साथी को हमसफ़र समझते हैं,
किस कदर पुराने हैं, हम नये जमाने में|
तेरे पास आने में, आधी उम्र गुज़री है,
आधी उम्र गुजरेगी, तुझसे दूर जाने में|”
कवि-परिचय में ये शेर देख कोई भी समझ सकता है, आज हमारे सामने प्रस्तुति एक “शायर” की होगी|
जी हाँ! “एक कविता बिहार से” के लिए“ आज जो रचना आपके सामने आएगी उसे चुनना वाकई मुश्किल रहा है| इनकी ग़ज़लें पढ़नी शुरू करो तो हर ग़ज़ल के साथ एक रिश्ता सा, एक अपनापन सा बनता चला जाता है| एक से बढ़कर एक शेर पढ़ने के बाद गहन दिमागी पशोपेश के बावजूद किसी ‘एक’ को नहीं चुन पाई तो इनकी पसंद इन्हीं से पूछ बैठी| ज्यादा क्या कहूँ इनकी रचना के बारे में| 11 जुलाई 1959 ई० में बिहार के आरा जिले में जन्में, शब्दों के माहिर खिलाड़ी और सकारात्मक व्यक्तित्व के धनी
श्री “आलम खुर्शीद” जी, नये जमाने के ग़ज़लकारों में जाना-पहचाना नाम हैं| इनकी इजाज़त और इन्ही की पसंद से हमारी कड़ी में शामिल ये बेहतरीन ग़ज़ल आपके सामने है|

एक आवाज़ में आवाज़ मिलाते हुए लोग| एक कविता बिहार से, photo by Bashshar Habibullah
तख्ते-शाही! तेरी औकात बताते हुए लोग,
देख! फिर जमा हुए खाक उड़ाते हुए लोग||
तोड़ डालेंगे सियासत की खुदाई का भरम,
वज्द में आते हुए, नाचते-गाते हुए लोग||
कुछ न कुछ सूरते-हालात बदल डालेंगे,
एक आवाज़ में आवाज़ मिलाते हुए लोग||
कोई तस्वीर किसी रोज़ बना ही लेंगे,
रोज पानी पे नये अक्स बनाते हुए लोग||
कितनी हैरत से तका करते हैं चेहरे अपने,
आईना-खाने में जाते हुए, आते हुए लोग||
काश! ताबीर की राहों से न भटकें आलम,
बुझती आँखों में नये ख्वाब जगाते हुए लोग||
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